आधुनिक से अत्याधुनिक होते इस दौर में भाईयों के बीच जमीन का बंटवारा होना कोई बड़ी बा नहीं है। आज बंटवारा किस-किस वस्तु को लेकर नहीं होता। समझदारी इसी में है कि पिता और भाई छोटी मोटी मनमुटाव के साथ-साथ आपसी सहमति से जीना सीख लें। परिवार में किसी भी तरह का मनमुटाव हो लेकिन एक बात तो तय है कि वह परिवार गांव या शहर की किसी नुक्कड़ पर एक होता नजर आऐगा। अपने परिवार के बीच कितना ही झगड़ हो फिर भी किसी न किसी तरह भाई के बच्चे अपने ताऊ को राम-राम कर देते है और चाची के हाथ की बनी खीर खा कर कह देते है कि मजा आ गया। जब जमीन का बंटवारा हुआ था तब यह करार नहीं किया गया था कि भाई का लड़का अपने ताऊ को राम-राम करेगा। उस वक्त तो कतरे-कतरे के लिए सोचा जा रहा था।
इन सब बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि भले ही झगड़े चलते रहे किंतु रिश्ते बचे रहते है। राम-राम से याद आया कि अब राम और रहीम में भी बंटवारा होने लगा है।कितने हिस्से में राम रहेंगे और कितने में रहीम। यानी बंटवारा हिंदुओं में भी होता है और मुस्लमानों में भी। चाहे फैसला पंचायत करें या फिर लखनऊ हाई कोर्ट पीठ। आयोध्या पर फैसले से साफ जाहिर हो गया है कि राम अब कानूनी तौर पर आयोध्या के हकदार है। सेवानिवृत जस्टिस शर्मा ब्रह्माण है। वे ये मानते है कि सारी जमीन राम की है। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। ऐसा हो जाता तो पूरी दुनिया राम औरब्रह्मा की होती। मैं राम का मित्र होता। हम में भी बंटवारा होता। तीनों को बरावर की हिस्सेदारियां मिलती। पूरी दुनिया के हिसाब से मुझे कम से कम मेरा मुल्क तो मिल ही जाता। ऐसे में पूरे भारत का मालिक मैं होता और किसी अखबार और चैनल पर राम और ब्रह्मा के साथ मेरा विज्ञापन चल रहा होता। शहर के किसी वड़ी सी नुक्कड़ पर कई बड़े-बड़े हॉर्डिंग्स लगे होते। हॉर्डिंग्स में राम और ब्रह्मा के बीच मैं प्रमोद कुमार खड़ा होता और लिखा होता प्रमोद कुमार के देश में आपका स्वागत है।
आयोध्या के इस फैसले ने बता दिया है कि इतने साल आयोध्या के राज सिंहासन पर बैठे राम गैरकानूनी थे। लेकिन आयोध्या पर लखनऊ पीठ के फैसले ने राम को कानूनी तौर पर रहने का एक और मौका दे दिया। फैसले से साफ जाहिर है कि अब भगवानों की सम्पति में भी बंटवारा होने लगा है। 84 लाख भगवानों में अगर कोई नये भगवान का जन्म होता है तो जन्म का पंजीकरण करवाना अनिवार्य हो जाएगा नहीं तो फिर बंटवारे के वक्त कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ सकते है। खैर जो हुआ ठीक हुआ कम से कम दो भगवान तो पड़ोसी बन गए। यानि राम के पड़ोसी है रहीम।
आयोध्या की विवादित जमीन पर राजनेताओं ने खूब टीआरपी बटोरी है। किसी भी नेता ने अपनी दादागिरि दिखाने में कोई कोर सर नहीं छोड़ी है। नेताओं में किसी ने कहा कि यह जमीन बाबरी मस्जिद की है तो किसी ने कहा कि इस भूमि पर राम का ही अधिकार है है ताकि कल को चुनाव हो तो उनका भरपूर सहयोग मिल सके। यह लड़ाई राम और रहीम की जमीन के बंटवारे की नहीं अपितु भ्रष्ट नेताओं की ज्यादा लग रही थी।
किसी ने इस जमीन पर अस्पताल बनाने की बात कही तो किसी ने कह दिया कि यहां तो विश्वविद्यालय या महाविद्यालय ही बनना चाहिए। लेकिन सेवानिवृत जस्टिस शर्मा कि यह बात कि पुरी जमीन राम कि है, ने मुझे सोचने पर मजबूर कर रखा है। कि मैं आयोध्या को किस नजरिए से देखू। एक पत्रकार के नजरिए से या एक श्रद्वालु के नजरिए से या फिर इतने साल राज करने वाले राम के मित्र के नजरिए से जिसने मुझे पूरा भारत देश दिया है। अगर मैं एक पत्रकार नजरिए से देखू तो हाई कोर्ट लखनऊ पीठ की पीठ थपथपाता हूं और कहता हू कि जितना हक राम का उतना ही रहिम का। क्योकिं मैं आस्तिक हूं और हिन्दू भी। एक श्रद्वालू के अनुसार यह सारी जमीन मेरे राम की होती। उस राम की जिसने आयोघ्या में जन्म लिया और उसी आयोघ्या में 14 साल का बनवास और लंका फतह करके लौटे। राम के मित्र के नजरिए से मैं राम के बारे में बुरा नहीं सोच सकता। हां मामला जमीन का है तो मैं मेरा हिस्सा कभी नहीं छोड़ूगां। ऐसी बात भी नहीं है कि मुझे जमीन के लिए राम से लड़ना पड़े क्योंकि राम इतने दयालू है कि उन्होंने ता लंका पर जीत दर्ज कर भवीषण को ही सोंप दी थी और कहां कि मुझे बड़ा दुख कि मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकता। अगर नहीं भी देंगे तो मैं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा तो कम से कम मेरा मुल्क मेरे हिस्से में आ ही जाएगा।
इन तीनो हालात ने मुझे पागल कर रखा। समझ नहीं आ रहा है किसे अपनाऊं। फिर ख्याल आया कि आज इस दौर में बन्टवारा तो हर किसी में होता है अब भगवान में होने लगा है तो कौन सी बड़ी बात है। समय के अनुसार भगवान भी एडजेस्ट कर लेंगे। आपको टेंशन लेने की जरुरत नहीं। बस जरुरत है आयोघ्या में अमन की।
इन सब बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि भले ही झगड़े चलते रहे किंतु रिश्ते बचे रहते है। राम-राम से याद आया कि अब राम और रहीम में भी बंटवारा होने लगा है।कितने हिस्से में राम रहेंगे और कितने में रहीम। यानी बंटवारा हिंदुओं में भी होता है और मुस्लमानों में भी। चाहे फैसला पंचायत करें या फिर लखनऊ हाई कोर्ट पीठ। आयोध्या पर फैसले से साफ जाहिर हो गया है कि राम अब कानूनी तौर पर आयोध्या के हकदार है। सेवानिवृत जस्टिस शर्मा ब्रह्माण है। वे ये मानते है कि सारी जमीन राम की है। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। ऐसा हो जाता तो पूरी दुनिया राम औरब्रह्मा की होती। मैं राम का मित्र होता। हम में भी बंटवारा होता। तीनों को बरावर की हिस्सेदारियां मिलती। पूरी दुनिया के हिसाब से मुझे कम से कम मेरा मुल्क तो मिल ही जाता। ऐसे में पूरे भारत का मालिक मैं होता और किसी अखबार और चैनल पर राम और ब्रह्मा के साथ मेरा विज्ञापन चल रहा होता। शहर के किसी वड़ी सी नुक्कड़ पर कई बड़े-बड़े हॉर्डिंग्स लगे होते। हॉर्डिंग्स में राम और ब्रह्मा के बीच मैं प्रमोद कुमार खड़ा होता और लिखा होता प्रमोद कुमार के देश में आपका स्वागत है।
आयोध्या के इस फैसले ने बता दिया है कि इतने साल आयोध्या के राज सिंहासन पर बैठे राम गैरकानूनी थे। लेकिन आयोध्या पर लखनऊ पीठ के फैसले ने राम को कानूनी तौर पर रहने का एक और मौका दे दिया। फैसले से साफ जाहिर है कि अब भगवानों की सम्पति में भी बंटवारा होने लगा है। 84 लाख भगवानों में अगर कोई नये भगवान का जन्म होता है तो जन्म का पंजीकरण करवाना अनिवार्य हो जाएगा नहीं तो फिर बंटवारे के वक्त कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ सकते है। खैर जो हुआ ठीक हुआ कम से कम दो भगवान तो पड़ोसी बन गए। यानि राम के पड़ोसी है रहीम।
आयोध्या की विवादित जमीन पर राजनेताओं ने खूब टीआरपी बटोरी है। किसी भी नेता ने अपनी दादागिरि दिखाने में कोई कोर सर नहीं छोड़ी है। नेताओं में किसी ने कहा कि यह जमीन बाबरी मस्जिद की है तो किसी ने कहा कि इस भूमि पर राम का ही अधिकार है है ताकि कल को चुनाव हो तो उनका भरपूर सहयोग मिल सके। यह लड़ाई राम और रहीम की जमीन के बंटवारे की नहीं अपितु भ्रष्ट नेताओं की ज्यादा लग रही थी।
किसी ने इस जमीन पर अस्पताल बनाने की बात कही तो किसी ने कह दिया कि यहां तो विश्वविद्यालय या महाविद्यालय ही बनना चाहिए। लेकिन सेवानिवृत जस्टिस शर्मा कि यह बात कि पुरी जमीन राम कि है, ने मुझे सोचने पर मजबूर कर रखा है। कि मैं आयोध्या को किस नजरिए से देखू। एक पत्रकार के नजरिए से या एक श्रद्वालु के नजरिए से या फिर इतने साल राज करने वाले राम के मित्र के नजरिए से जिसने मुझे पूरा भारत देश दिया है। अगर मैं एक पत्रकार नजरिए से देखू तो हाई कोर्ट लखनऊ पीठ की पीठ थपथपाता हूं और कहता हू कि जितना हक राम का उतना ही रहिम का। क्योकिं मैं आस्तिक हूं और हिन्दू भी। एक श्रद्वालू के अनुसार यह सारी जमीन मेरे राम की होती। उस राम की जिसने आयोघ्या में जन्म लिया और उसी आयोघ्या में 14 साल का बनवास और लंका फतह करके लौटे। राम के मित्र के नजरिए से मैं राम के बारे में बुरा नहीं सोच सकता। हां मामला जमीन का है तो मैं मेरा हिस्सा कभी नहीं छोड़ूगां। ऐसी बात भी नहीं है कि मुझे जमीन के लिए राम से लड़ना पड़े क्योंकि राम इतने दयालू है कि उन्होंने ता लंका पर जीत दर्ज कर भवीषण को ही सोंप दी थी और कहां कि मुझे बड़ा दुख कि मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकता। अगर नहीं भी देंगे तो मैं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा तो कम से कम मेरा मुल्क मेरे हिस्से में आ ही जाएगा।
इन तीनो हालात ने मुझे पागल कर रखा। समझ नहीं आ रहा है किसे अपनाऊं। फिर ख्याल आया कि आज इस दौर में बन्टवारा तो हर किसी में होता है अब भगवान में होने लगा है तो कौन सी बड़ी बात है। समय के अनुसार भगवान भी एडजेस्ट कर लेंगे। आपको टेंशन लेने की जरुरत नहीं। बस जरुरत है आयोघ्या में अमन की।