आल इज टीआरपी भईया

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मानो या ना मानो लेकिन टीवी वाले भईया बहुत तेज़ होते है। जो काम किसी के बस का ना हो वह टीवी वाले फटा-फट कर देते है। ऐसे में सरकार के पास सुनहरा मौका है अपनी चुस्ती-फुर्ती बड़ाने का, वह अपने लोगों को इने पास ट्रेंड करवा सकती है।
मैं 1999 से लेकर मुंबई पर आंतकी हमले तक की पत्रकारिता को सलाम करने का मन कर रहा है और पता नहीं क्या-क्या करने का।
कुछ ही दिन पहले की तो बात है लखीसराय पुलिस बंधक प्रकरण में पत्रकार भाईयोंं ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। अब क्या करूं-तय नहीं, सोदा समझ से बाहर !
खैर छोड़िए, उसी रात जब मैंने करीब रात डेढ़ बजे एक टीवी आन किया तो एक चैनल हेड अपनी सफाई दे रहा था। वह अपने बचाव में सफाई इस कदर दे रहा था जैसे भारतीय किक्रेट टीम में युवराज सिंह कभी क्षेत्ररक्षण करते है। वह पत्रकारिता क्या होती है लाइव दिखा रहा था। वह अविनाश को माओवादी कह रहा था। उसका टेलीफोनिक इंटरव्यू लाइव कर रहा था और यह भी कह रहा था कि ‘मैं अविनाश को बिल्कुल नहीं जानता हूं। तो भईया, पिछले तीन-चार दिन से उसकी एक-एक बात घर-घर तक क्यों पहुंचाते रहे? और फिर लखीसराय प्रकरण में उसकी कौन सी बात पूरी हुई, जो वह कंटीन्यू लाईव कर रहा था?
एक चैनल ने तो हद ही कर दी। वह अपना एक्सक्लूसिव न्यूज़ दिखा रहा था। देखिये- ‘एक आदमी, जो खुद को नक्सली नेता किशन जी बता रहा था, अभय यादव के गांव में आया हुआ है, उसकी पत्नी से राखी बंधवा रहा है, उसकी बेटी को पुचकार रहा है और अभय को मुक्त करने का भरोसा देने के बाद नक्सलियों की तरफदारी में भाषण झाड़कर चला गया। बाद में एक दूसरे चैनल ने पहले वाले चैनल की बाकायदा पोल खोली-खुद को किशन जी बताने वाले आदमी वस्तुतः पागल था। मजेदार तो यह कि पागल आदमी अपने साथ चैनल वाले को भी लेकर अभय के गांव में आया था। कुछ ही मिनट में सभी चैनलों को पक्के हुए फल की तरह यह सीन उनके हाथों में थमा दिया। उसने भी खाया, जिसने बाद में इस व्यक्ति को पागल करार दिया। ऐसे मुझे लगता है कि मैं भी चैनल की मदद से किशन बन सकता हूं।
शायद इसी सहूलियत का माओवादियों ने फायदा उठाया, उठाते हैं। उनकी तरफ से खूब मार्केटिंग हुई है।
चलिए दोस्तों मैं आपका ज्ञान थोड़ा सा और बढ़ा देता हूं। यह चैनल की फ्लैश खबर-’अभय यादव मारे गये। बाद में पता चला-’टेटे को मार दिया। चैनल अपनी ही बातों को काटते भी रहे। बंधक पुलिसकर्मियों छूटने का समय बताते थे और इसके गुजरने की खीझ नक्सलियों पर उतारते भी रहे।
इसर ब्रेकिंग न्यूज चैनल ने बंधकों की रिहाई की खबर चला दी यह मानकर कि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। पत्रकारिता ऐसी लाईन है जो बातें बदलना खुब सीखा देती है। बातें कैसे बदली जाती है भला इनसे बेहतर कौन जानता है। सब जानते है कि बातें पहले भी बदली जा चुकी है। एक चैनल ने बंधकों की रिहाई की गुंजाइश अपने चैनल की थाली में ऐसे परोसा कि खबर, खबर का असर के रूप में चली।
एक की खबर चेहरे पर हंसी लाती भी नहीं थी कि दूसरी की रिपोर्ट रोंगटे खड़ी कर देती थी। हां, एकाध मामलों में उनमें गजब की एका है। सभी बंधकों के परिजनों से पूछ रहे हैं-आप कैसा फील कर रहे हैं? लाश को क्लोज अप में दिखा रहे हैं।
भूत-प्रेत, जादू-टोना, तिलस्म, मिथक के थीम को तो उन्होंने अपने खून में उतार लिया है। ये पब्लिक को स्वर्ग का द्वार दिखाते हैं और 2012 में जलजला से डराते हैं। अब तो कुछ ने सेक्स आधारित लजीज सर्वे के बूते अपनी टीआरपी बढ़ाने की बुलंद कोशिश शुरू कर दी है। अब स्टुडियों में ऐसे लोगों को लाते है जो बता देते है कि आप कब मरोगे। धन कैसे कमाया जाता है आईए देखते है थोड़ी देर में। वाकई, ये बड़ा ही तेज चैनल है।

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दिव्यांशी शर्मा

मेरे बारे में जान कर क्या करोंगे। लिखने का कोई शोक नहीं। जब लिखने का मन करता है तो बस बकवास के इलावा कोई दुसरी चीज दिखती ही नहीं है। किसी को मेरी बकवास अच्छी लगती है किसी को नहीं। नहीं में वे लोग है जो जिंदगी से डरतें है और बकवास नहीं करते। और मेरे बारे में क्या लिखू।

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