मरना है क्या? चल हट! थड्ड्ड्ााााााााााा

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रोज रोज की कहानी पर मुझे रोना आने लगा है। सोचता हूं राजनेता क्यों होते है। क्यों ये ही देश पर राज करते है। क्या उन लोगों का उतना ही अधिकार नहीं की वो ठीक से सड़क पर चल सके जिन्होंने इन राजनेताओं को इस राजगद्दी पर बैठाया है। बात हाल ही की है जो मुझे सोचने और मेरी आंख में आंसू आने पर मजबूर करती है। आखिर मैंने अपनी आंखों के सामने लाल बत्ती का रौब जो देखा है। यह रोब किसी दूसरे लाल बत्ती वाले भाईसाहब पर नहीं था बल्कि आम आदमी पर था। मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा हूं। मेरे अंदर की पत्रकारिता जागना संभाविक है। एक दिन सड़क से गुजर रहा था कि पीछे से लाल बत्ती वाले काफिले का हूटर सुनाई दिया। मैं यह तो नहीं जानता कि इस फ्लीट में कौन जनता के वोटों से जीता राजनेता था लेकिन जो मैंने देखा, उस दृष्य ने मुझे बहुत बड़ा आहत पहंुचाया। दरअसल इस काफिले की आवाज धीरेधीरे साइकिल चलाने वाले उस मजबूर बूढ़े कानों को सुनाई नहीं दी। उसकी उम्र करीब 70 साल थी जिससे प्रतीत हो रहा था कि बूढ़े व्यक्ति को कम सुनाई दे रहा होगा। नतीजा काफिला उसकी साइकिल के पास पहुंचा। काफिले में सबसे आगे चल रही पुलिस की गाड़ी में बैठे पुलिस भी वीआईपी की खातिरदारी में आम आदमी का दर्द भूल गए। खैर उनकी तो डयूटी थी। फिर भी मैं कहूंगा कि इंसानियत उन में भी होनी चाहिए थी। कार के साइकिल के पास पहुंचते ही कार में से एक राइफल बाहर निकली। मैं यहं सारा मंजर अपनी आंखों से देख रहा था। राइफल निकली और अगले ही पल वापस अंदर चली गई लेकिन यह राइफल उस बूढ़े और उसकी साइकिल को सड़क से पांच फिट दूर गिरा गई मानो रास्ते में किसी रोड़े को उठा कर फेंका हो। इस वीआईपी रौब ने मुझे अंदर तक हिला दिया। काश मेरे वश में होता तो मैं उस वीआईपी को उससे माफी मांगने के लिए जरूर रोक लेता। काफिला चला गया लेकिन जो जख्म उस बूढ़े को दिए शायद वह कभी नहीं भूल सकेगा। मैं उस काफिले को करीब से देख रहा था। मैं वहां से तुरंत भागा और उस बूढ़े व्यक्ति को उठाया और घर छोड़ आया। मैं अक्सर देखा करता हूं कि कोई भी वीआईपी काफिला जाता है तो पूरा सिस्टम रोक दिया जाता है। आखिर जनता के वोट से वीआईपी बनने वाले यह लोग कब इस जनता का दर्द समझेंगे। अरे इनसे अच्छे तो वो विदेशी हैं, जहां वीआईपी के जाने की कानोंकान खबर भी नहीं होती। अब आपके दिमाग में एक सवाल आना जायज है, आखिर वीआईपी है तो सुरक्षा की जिम्मेदारी भी बनती है। अरे जब आप ट्रेफिक रोक देंगे तो हर किसी को पता चल जाएगा कि यहां से कौन गुजरने वाला है। बिना हूटर क्या राजाबाबू से जाया नहीं जाता? क्या लाल बत्ती के बिना कोई पहचानता नहीं? अगर ऐसा है तो सारा सिस्टम ही एक जैसा है। इसे सुधारने के लिए शायद मुझे अपनी वोट की कीमत पहचाने की आवश्यकता है। शायद सिस्टम सुधर जाए।

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दिव्यांशी शर्मा

मेरे बारे में जान कर क्या करोंगे। लिखने का कोई शोक नहीं। जब लिखने का मन करता है तो बस बकवास के इलावा कोई दुसरी चीज दिखती ही नहीं है। किसी को मेरी बकवास अच्छी लगती है किसी को नहीं। नहीं में वे लोग है जो जिंदगी से डरतें है और बकवास नहीं करते। और मेरे बारे में क्या लिखू।

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