न जाने कब हमारी सोच बदलेगी और कब हमारा समाज

सबका सब्र टूट गया है। क्या सब्र टूटना काफ़ी है? इस देश में सब कुछ निर्धारित है तो फिर क्यों हम बदलें। दिल्ली में उस लड़की के साथ हुए कुकृत्य ने समाज का कुसंस्कारी चेहरा हमारे सामने पेश किया है। ये कोई ऐसा पहला मामला नहीं जिसने माशूम लड़की को इतनी दरिंदगी से नोचा हो। सभ्य समाज को आहत किया हो। ना जाने कितनी ऐसी लड़कियां है जो हैवानियत की शिकार होती है। ये समाज में घटित होने वाली रोज की घटनाएं है। ना जाने कितनियों को बेरहमी से नोचा जाता है।  कहां रोक पा रही है लड़कियां इस हैवानियत को और कहां रोक पा रहे है हम इन कुसंस्कारी लोगों के कुकृत्य को। क्या कसूर था उस लड़की का जिसे बीच बगाहै सड़क पर कुसंस्कारी लोगों ने कुकृत्य किया । किसी का भी मदद के लिए हाथ नहीं उठा। नारी अत्याचार के प्रति संवेदना व आक्रोश तो व्यक्त करते हैं लेकिन सहायता के वक्त हाथ नहीं बढ़ाते क्यो?


{tocify} $title={हाईलाइट्स}

 सुरक्षा सिर्फ मर्दो के हाथ में है और कसूर सिर्फ औरतों का है। इस घिनौने कांड में भी उस लड़की को दोषी ठहराया जाएगा। लोगों के जितने मुहं है उतनी बातें करेंगे। उसके बारे में कहेंगे कि उसे घर से अकेला नहीं निकलना चाहिए था। उसे कपड़े अच्छे पहनने चाहिए थे। कोई ऐसा इशारा किया होगा जिससे ये पूरी घटना घटी अगेरा-बगेरा। जैसे देश के नेता कह रहे है। जैसा कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- “बलात्कार की घटनाएं भारत में कम इंडिया में ज्यादा होती हैं, क्योंकि वहां विदेशी सभ्यता का असर ज्यादा दिखाई देता है, आप देश के गांवों और जंगलों में देखें जहां कोई सामूहिक बलात्कार या यौन अपराध की घटनाएं नहीं होतीं। यह शहरी इलाकों में होते हैं। महिलाओं के प्रति व्यवहार भारतीय परंपरागत मूल्यों के आधार पर होना चाहिए।” 

भारत में दुनिया के लिए अच्छी ख़बर


दुष्कर्म की शिकार नारी के ऊपर ही सारा दोष मढ़ देतें है और समाज में उसका जीना मुहाल कर देतें हैं। क्यों वो लड़की मातृसत्तात्मक होते हुए भी असहाय है। फिर क्यों मर्दों के सामने गिड़गिड़ाती है छोड़ने के लिए, क्यों घर में मां-बहनों की याद दिलाती है। क्या गिड़गिड़ाने से वो दरिंदे छोड़ देते है। धार्मिक गुरु आसाराम बापू ने पीडि़ता को ही कटघरे में खड़ा करते हुए कहा- "कि छात्रा भी उतनी ही दोषी है जितने दुष्कर्मी। सिर्फ 5-6 लड़के ही दोषी नहीं हो सकते। पीडि़त बच्ची भी दुष्कर्मियों के बराबर की दोषी है। लड़की को दोषियों को अपना भाई बना लेना चाहिए था। उनके आगे गिड़गिड़ाकर यह सब बंद करने के लिए कहना था। इससे उसकी जान और इज्जत दोनों बच सकती थी। क्या एक हाथ से थाली बजती है? मुझे ऐसा नहीं लगता। आरोपियों ने शराब पी रखी थी। यदि लडकी ने गुरुदीक्षा ली होती, देवी सरस्वती का मंत्र लिया होता तो वह बॉयफ्रेंड के साथ उस बस में चढ़ती ही नहीं।"  अब बापू जी को कौन बताए कि बलात्कार की ज्यात्तर घटनाएं पीड़िता के घर वालों के द्वारा ही होती है। क्या भईया कहने से वो  उसे वक्स देते। अरे जो खुद बहन बनाकर बस में बैठाते है वो इस रिश्ते को क्या जानते होंगे।

दुनिया में भाई क्या हो रहा है देखा क्या आपने 


जिस देश में सत्ता औरतों के हाथ में है तब भी महिलाओं कि इतनी भयभाव स्थिति है तो मर्दों के देश का हम हाल समझ सकते है क्या हाल होता है। यहां 6 साल की बच्ची से लेकर वृद्ध तक कोई सुरक्षित नहीं है। हर किसी उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के और हैवानियत के शिकार की खबरें आती रहती है। फिर इस देश में, इस सभ्य समाज में सुरक्षित कौन है। माँ बहन की गलियां तो सभी देते है तो इज्जत कौन करेगा नारियों की। लड़की रूप में ही जन्म लेना मुश्किल हो गया है।
ऐसी घटना पर हर भारतीय को लज्जित होना चाहिये और इसका कठोरतम से भी कठोर प्रतिकार होना चाहिए। हुआ भी। आज दामिनी युवा संघर्ष का प्रतीक बन गई है। इसके नाम पर पूरे देश ने बलात्कार के विरोध में अपनी भावनाओं एवं आक्रोश को प्रकट भी किया। लेकिन एक सवाल बार बार मेरे सामने अनुत्तरित है कि क्या हमारे समाज व सरकार ने कुछ भी सीखा है इससे?  कुछ भी नहीं। जो जैसा चल रहा था वैसे ही आज भी चल रहा है। बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी नहीं हो रही है। रोज की ताजा खबरों में बलात्कार ही छाया रहता है। पुलिस के काम करने के तरीके में कहीं कोई फर्क नहीं। भयानक खून को जमा देने वाली ठण्ड में भी, लोग इकठ्ठा होकर उस दामिनी को श्रधांजलि देने पहुंचे। जो ये दिखता है कि अब और नहीं सहेंगे। सरकार और समाज को अपना महिलाओं के  प्रति नजरिया बदलना ही होगा। अगर आज हम ढीले पड़ गए तो इस सामाजिक बदलाव का हाथ आया मौका हमेशा के लिए निकल जायेगा।
 

समाज में दिल जीतने वाली लड़की


सामाजिक बदलाव में समाज से उम्मीद है कि हमें अपने दोहरे चरित्र को छोड़ना होगा। एक तरफ तो हम नारी शक्ति की देवी माँ  के रूप में पूजा करते हैं और दूसरी तरफ उसी नारी को हवस की नजरो से देखते है, उसे गिद्ध की तरह नोच खाते है।
महिला मुख्यमंत्री के शहर का ये हाल है तो बाकी  का होगा। कोइ कहता है शख्त कानून नहीं है।  कानून है भय नहीं है। सरेआम फ़ांसी दोगे तो लोग डरेंगे। कोइ कहता है आधुनिक समाज का संकट है।  कोई कहता है सीता को लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए और मर्यादा में रहना चाहिए। कोई कहता है ऐसे अपराध भारत में कम इंडिया में ज्यादा होते है और कोई प्रवचन करता है कि लड़की को दोषियों को अपना भाई बना लेना चाहिए था। न जाने कब हमारी सोच बदलेगी और कब हमारा समाज।
दिव्यांशी शर्मा

मेरे बारे में जान कर क्या करोंगे। लिखने का कोई शोक नहीं। जब लिखने का मन करता है तो बस बकवास के इलावा कोई दुसरी चीज दिखती ही नहीं है। किसी को मेरी बकवास अच्छी लगती है किसी को नहीं। नहीं में वे लोग है जो जिंदगी से डरतें है और बकवास नहीं करते। और मेरे बारे में क्या लिखू।

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