शास्त्री जी का जन्म दिन या शहीदी दिवस

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हां हम है ही अहसानफरामोश। हमारे खून में ही घुल गयी है यह बीमारी। हम भूलने की बीमारी से ग्रसित है। हम उन्हें भी बिसार चुके है जो देश की खातिर कुर्बान हो गए।. भारत के लाल ,सादगी की प्रतिमूर्ति, हिम्मत के धनी, जय जवान जय किसान के उद्बोधक स्व. लाल बहादुर शास्त्री का आज शहीदी दिवस है। जन्म तिथि की जगह शहीदी दिवस मैने जानबूझ कर लिखा है।गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।

नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।

नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।

मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी।




आज़ादी के 18 साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था। 1962 चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया। हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण की हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है। उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था। हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने।

1964 में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल-लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली। उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी। लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा। जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ। मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया। ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया 18 साल का बालिग भारत नए सपने देखने लगा।

तभी सन 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया। पाकिस्तान अपने अभेद अमरीकी पैटर्न टैंक के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया। तभी एक आवाज गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे। जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया। उनके पैटर्न टैंक आज भी सड़को पर टूटे पड़े है। वीर सैनिकों की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी। हम आजादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे। फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुई। क्या हुआ क्या नहीं मालूम नहीं। हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश ने बहादुर लाल, अपना लाल बहादुर खो दिया।

और हम, हम लाल बहादुर शास्त्री को भी भूल रहे है। क्या करे हम अल्प स्मृति के शिकार है हमें तो करंट इशु ही याद रहते है और करीब 45 साल पहले क्या हुआ हमें क्या मतलब। हां शास्त्री जी अपने समय में अपने बच्चो को भी राजनीति में एडजेस्ट कर देते तो आज शास्त्री जी को भी याद कर रहे होते कई लोग ...... और पार्टी ..........हम भी।
जय जवान जय किसान।।

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दिव्यांशी शर्मा

मेरे बारे में जान कर क्या करोंगे। लिखने का कोई शोक नहीं। जब लिखने का मन करता है तो बस बकवास के इलावा कोई दुसरी चीज दिखती ही नहीं है। किसी को मेरी बकवास अच्छी लगती है किसी को नहीं। नहीं में वे लोग है जो जिंदगी से डरतें है और बकवास नहीं करते। और मेरे बारे में क्या लिखू।

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