
आम तौर पर हम युवाओं पर पथभ्रष्ट और गैरजिम्मेदार होने का आरोप लगाते हैं। क्या वाकई कुछ कड़वे अनुभवों के बिना हम सारी युवा पीढ़ी को गलत ठहरा सकते हैं? अभी कुछ दिनों पहले अपने भाई के नाम से की हुई एक पॉलिसी का चेक मिला। वह इंजीनियरिंग का छात्र है अतः हमने एजूकेशन लोन ले रखा है। जब एकसाथ राशि मिली तो हमें लगा कि वह किसी कीमती वस्तु खरीदने के लिए कहेगा लेकिन उसके ये शब्द हमें उस राशि से भी कीमती लगे जिसमें उसने कहा कि इस वर्ष की मेरी फीस हम इसी राशि से चुकाएँगे जिससे कर्ज लेने की आवश्यकता नहीं रहेगी। अनेक बार अभिभावक अपने युवा बेटे या बेटी के बारे में यही सोचते हैं कि उन्हें अभिभावकों की चिन्ता नहीं है या फिर इस बारे में वे सोचते ही नहीं हैं। नतीजा यह कि आज का युवा गैर जिम्मेदार, खर्चीला और अनियंत्रित हो रहा है। उदाहरणों में यह सच हो सकता है लेकिन साधारणतः हम पाते हैं कि युवाओं को अधिक संघर्ष करना है क्योंकि प्रतियोगिता का समय है। जब परिश्रम करते हैं तभी मंजिल सामने होती है। छोटे भाई के रूप में मैं भी यह सोचता हूँ की सभी युवाओं की तरह मैं भी तो युवा हूँ । पिचले वर्ष सिरसा के एक होटल में मैं जब अपने परिवार के साथ खाना खा रहा था , तभी तीन-चार युवतियों का समूह मेरे पास आकर मुझे अपने बारे मैं बताने लगी । ये लड़कियाँ वही थीं जो मेरे विद्दालय मैं मेरी सीनियर थी । आज वे सभी उच्च शिक्षित होकर अच्छी कंपनियों में कार्यरत हैं। केवल युवा बडो का ही नही अपितु अपने से छोटो को भी प्यार से बतियातें हैं । कुल मिलाकर यह एक ऐसा सामंजस्य है जो प्रत्येक अभिभावक और युवा बेटे, बेटी के बीच होना चाहिए। यह एक ऐसा सेतु है जो नई और पुरानी पीढ़ी को जोड़ने में मदद कर सकेगी और तब किसी को यह नहीं कहना पड़ेगा कि युवा गलत होते हैं।