तुम हिंदी

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भाषा से

कुछ अधिक हो
तुम हिंदी
रौशनी जहाँ पहुंची नहीं
वहां की आवाज़ हो


खेत खलिहान में
जो गुनगुनाती हैं फसलें
पोखरों में जो नहाती हैं भैसें
ऐसे जीवन की
तुम संगीत हो


बहरी जब
हो जाती है सत्ता
उसे जगाने का तुम
मूल मंत्र हो
भाषा से कुछ अधिक जो
तुम हिंदी.

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दिव्यांशी शर्मा

मेरे बारे में जान कर क्या करोंगे। लिखने का कोई शोक नहीं। जब लिखने का मन करता है तो बस बकवास के इलावा कोई दुसरी चीज दिखती ही नहीं है। किसी को मेरी बकवास अच्छी लगती है किसी को नहीं। नहीं में वे लोग है जो जिंदगी से डरतें है और बकवास नहीं करते। और मेरे बारे में क्या लिखू।

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