भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी
रौशनी जहाँ पहुंची नहीं
वहां की आवाज़ हो
खेत खलिहान में
जो गुनगुनाती हैं फसलें
पोखरों में जो नहाती हैं भैसें
ऐसे जीवन की
तुम संगीत हो
बहरी जब
हो जाती है सत्ता
उसे जगाने का तुम
मूल मंत्र हो
भाषा से कुछ अधिक जो
तुम हिंदी.