
अगर देखा जाए तो गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर। हैरत तो तब होती है जब छः दशक से भारतीय लोकतांत्रिकव्यवस्था में किसी भी राजनैतिक दल ने भुख को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। हर कोई राजनेता महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे ही गीत गाता रहा है।लेकिन भूख जैसी मारमिक समस्या की और ध्यान ही नहीं गया। अरे अगर राजनेता को मालूम होता की जिन्हे दो वक्त की रोटी नसीब नहींहोती वे उनके मतदाता नही है तो वे इन लोगों को देश का हिस्सा मानने से भी इन्कार कर देते। फिर राजनैतिक दल उनके बारे में क्यों सोचेभला ? यहीं सच नजर आ रहा है। अगर सरकार को नक्सल को रोकना है तो भूखमरी जैसी समस्या पर काबू पाना होगा।