भारतीय सरकार नक्सल जैसी समस्याओं से तो निपटने की बात करती है लेकिन समस्या की जड़तक पहुंचने की कोशिश ही नहीं की जाती। हमारे देश को आजाद हुए करीब 63 बर्ष हो गए किसी भीसरकार ने भूख जैसी समस्या तबजू ही नहीं दिया। नतीजा हमारे सामने है, नक्सलवाद औरआंतकवाद जैसी समस्याएं कुरूप धारण कर रही है। केन्द्रीय सरकार बार-बार कहती रही है किनक्सलियों को मिटा देना चाहिए। केन्द्रीय सरकार का कहना है कि वे कोई ना कोई घटना को अंजामदेकर देश के विकास और शांति में अड़चन पैदा करते है। आंतकवाद और नक्सवाद को खत्म करने सेपहले जान लेना जरूरी है कि आम जनता नक्ल जैसा खुंखयात रूप क्यों धारण करतें है? आखिर क्यावजह है कि वे देश में अशांति फैलाते है। अगर उन परिस्थियों पर ही अमल कर लिया जाए जिससेनक्सलवादी उत्पन्न होते है तो देश में ऐसी कोई समस्या ही जन्म नहीं लेगी। कुछ दिनों पहले की बातहै कि बिहार-क्षारखंड सीमा पर नक्सलियों ने जो सबसे अधिक सुरक्षित माने जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस को बन्धक बनाया तो सरकारकी आंखों से नींद ही उड़ गई। मानो ऐसा लग रहा हो जैसे सरकार ने कभी नींद ली ही न हो। दिमाग पर जोर डालिए और याद किजिए उसघटना को। क्या किया नक्सलियों ने और क्या नहीं? जाहिर सी बात है वहां नक्सलियों ने वहां खून-खराबा तो किया ही होगा। लूटपात तोमचाई ही होगी। जो आप सोच रहे है वैसा विल्कुल ही नही हुआ। नक्सलियों ने लोगों को बन्धक बनाया जरूर लेकिन किसी को किसी प्रकारका नुक्सान पहुंचाना मकसद नहीं था। मकसद था तो भर पेट खाना खाना। नक्सली तो सिर्फ रेलगाड़ी के रसोईघर से खाना लेकर भाग गए।वे चाहते तो कई लोगों की मौत बन सकते थे। वे चाहते तो पूरी ट्रेन को लूट सकते थे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इससे साफ पता चलता हैकि नक्सलियों के लिए दो वक्त की रोटी अहम है ना की दौलत।
अगर देखा जाए तो गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर। हैरत तो तब होती है जब छः दशक से भारतीय लोकतांत्रिकव्यवस्था में किसी भी राजनैतिक दल ने भुख को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। हर कोई राजनेता महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे ही गीत गाता रहा है।लेकिन भूख जैसी मारमिक समस्या की और ध्यान ही नहीं गया। अरे अगर राजनेता को मालूम होता की जिन्हे दो वक्त की रोटी नसीब नहींहोती वे उनके मतदाता नही है तो वे इन लोगों को देश का हिस्सा मानने से भी इन्कार कर देते। फिर राजनैतिक दल उनके बारे में क्यों सोचेभला ? यहीं सच नजर आ रहा है। अगर सरकार को नक्सल को रोकना है तो भूखमरी जैसी समस्या पर काबू पाना होगा।
अगर देखा जाए तो गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर। हैरत तो तब होती है जब छः दशक से भारतीय लोकतांत्रिकव्यवस्था में किसी भी राजनैतिक दल ने भुख को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। हर कोई राजनेता महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे ही गीत गाता रहा है।लेकिन भूख जैसी मारमिक समस्या की और ध्यान ही नहीं गया। अरे अगर राजनेता को मालूम होता की जिन्हे दो वक्त की रोटी नसीब नहींहोती वे उनके मतदाता नही है तो वे इन लोगों को देश का हिस्सा मानने से भी इन्कार कर देते। फिर राजनैतिक दल उनके बारे में क्यों सोचेभला ? यहीं सच नजर आ रहा है। अगर सरकार को नक्सल को रोकना है तो भूखमरी जैसी समस्या पर काबू पाना होगा।